श्रीगणेशप्राणप्रतिष्ठापनापूजा गणेश प्राणप्रतिष्ठापना 19.9.2023 मंगलवार
श्री गणेश चतुर्थी रथयात्रा गणेश पूजन मंगलावार दे. 19/09/2023
संकष्ट नाशन चतुर्थी व्रत.
भाद्रपद शुद्ध पक्षिला चतुर्थीला महासिद्धिविनायकी चतुर्थी वर्गीकरणत। ही चतुर्थी रविवारी या मंगलावारी अलियास तिचे महात्म्य अधिक असते। हिला वरद चतुर्थी और शिवा असेही महन्तात।
या दिव्य दिव्य म्हणजे मतिचा गणपति करूँ, ब्राह्मणांकदून प्राणप्रतिष्ठा करूँ, पूजन करूँ विसर्जन करावे, ऐसे शास्त्र आहे। या गणपतिला वरद गणपति अशी का उल्लेख है।
अरवी गणपति तुलसी पत्र वहावयाचे नसते, वास्तव में या दिव्य गणपति तुलसी पत्र व वहावयाचे असते।
प्रत्येक प्राणिमत्राला संकटे चार प्रकार का होता है। गर्भज, देहज, अंतिम व याम्यज या संकटातून मुक्त होन्याकारिता गणराया संकष्ट चतुर्थीचे व्रत संगितले आहे। प्रसूतिजन्य, बाल्यावस्था, मरणात्मक तदनन्तर यमलोक गमन या चार प्रकार का संकटाञ्च नाश करनारे व चतुर्विध पुरुषार्थ प्राप्त करुण देनारे मह्नून संकष्ट चतुर्थी व्रत प्रसिद्ध आहे।
गणराज: "जे कोनि या दिव्य निराहार उपवास दिटेल व माझे भजन पूजन जप दी अनुष्ठान नैमित्तिक साधन साधन त्यांना धर्म अर्थ काम व मोक्ष आशा चतुर्विध पुरुषार्थांची प्राप्त होइल।"
या दिव्य मृण्मय मूर्तिचे ठिकानि प्राणप्रतिष्ठा डेक्स विनायकाची षोडशोपचारनि पूजा करौं एका मोदकाचा नैवेद्य द्यावा।
या चतुर्थीचे थाई गणेशाच्या ध्यानाचे स्वरूप सग्तो।
स्कान्तान्तर
"एकदन्तं शूर्पकर्णं नागयज्ञोपवीनं।।
पाशांकुशधरं देवं ध्यायेत् सिद्धि विनायकम्।।"
अर्थ एकदंत शूर्पकर्ण साराचे यज्ञोपवीत पाश व मोक्ष धारणारा देव सिद्धिविनायक याचे ध्यान करावे।
गंध 21 दूर्वा घेरा
गणाधिपाय
उमापुत्राय
अघनाशनाय
विनायकाय
ईशपुत्राय
सर्वसिद्धिप्रदाय
एकदन्ताय
इभवकत्रय
मूषकवाहनाय
कुमारगुरुवे
या दहा नावाने हर नावाला 22 याप्रमाणे दूर्वा दान करून अविशिष्ट एक वरल दहाही नवांचा उच्च करून दान करावी। ब्राह्मणाला दहा मोदक देऊन आपन दाहा भक्षण करावे। याप्रमाणे
विनायक व्रताचा संक्षिप्त जनावा.
पूजा महोत्सव: सूर्योदयपासून ते मध्याह्नकालपर्यन्त ग्राह्य आहे।
या चतुर्थीचे दिव्य चंद्र दर्शन झाले असता मिथ्या दोषाचा आरोप होतो। चन्द्र दर्शन झाले तर दोष परिहारार्थ खाली श्लोक जप करावा।
भविष्यपुराण:
"सिंहः प्रसेनमवधीत्सिंहो जाम्बवता हतः।"
सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष्यः स्यमन्तकः''
प्रथम पूज्य श्री गणेश के प्रमुख त्योहार गणेश चतुर्थी की अंतिम तिथि शुरू हो गई है। इस 2021 में यह व्रत 10 सितंबर दिन शुक्रवार को है भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी मनाई जाएगी। इसे विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है। इस बार 10 दिन बाद गणपति बप्पा का विसर्जन किया जाएगा। वह दिन अनंत चतुर्दशी है।
गणेश चतुर्थी को लेकर कई तरह की व्याख्याएं हैं, जिनमें से एक यह भी है कि गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा का दर्शन करना पाप लगता है। इस सिद्धांत के अनुसार, जो व्यक्ति उस दिन चंद्रमा के दर्शन करता है, उस पर ब्लॉग का आरोप लगता है। जानिए इसके पीछे की कहानी और यदि आप से चंद्रमा के दर्शन हो जाएं तो क्या है उपाय...
गणेशजी चंद्रमा और की कथा...
पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि जब गणेशजी को मुख में लाया गया और उन्होंने पृथ्वी की सबसे पहली प्रतिमा की, तो प्रथम पूज्य देव कहलाए। ऐसे में सभी देवताओं ने अपनी वंदना की, लेकिन उस समय चंद्रमा मंद-मंद डूबे रहे।
यदि आपने गलती से भी चतुर्थी का चंद्र दर्शन कर लिया है तो उपाय के तौर पर यह मंत्र और कथा जरूर पढ़ें...
श्री गणेश के इस श्राप के चतुर्थी तिथि से शुरू होने से लेकर समाप्त होने तक चन्द्रमा के दर्शन नहीं किये जा सकते। लेकिन, यदि भूल से गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन हो जाएं तो मिथ्या दोष से मुक्ति के लिए नीचे लिखे मंत्रों का जाप करना चाहिए और बताई गई कथा का श्रवण करना चाहिए...
'सिंह: प्रसेनमवधीत्सिंहो जाम्बवता हत:।
सुकुमारक मारोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकर:''
स्यमन्तक मणि की प्रामाणिक कथा...
एक बार नंदकिशोर ने कहा कि संतकुमारों ने कहा कि चौथ की चंद्रमा के दर्शन करने से श्रीकृष्ण पर जो लांछन लगा था, वह सिद्धिविनायक व्रत करने से ही दूर हो गया था। ऐसा देखकर संतकुमारों को आश्चर्य हुआ।
उन्होंने पूर्णब्रह्म श्रीकृष्ण को कलंक लगने की कथा सुनाई तो नंदकिशोर ने बताया- एक बार जरासंध के भय से श्रीकृष्ण समुद्र के मध्य नगरी बसाकर रहने लगे। इसी नगरी का नाम द्वारिकापुरी है। द्वारिकापुरी में निवास करने वाले सत्राजित यादव ने सूर्यनारायण की आराधना की। तब भगवान सूर्य ने उन्हें नित्य आठ भार सोना देने वाली स्यमंतक नाम की मणि को अपने गले से उगलकर दे दिया।
जब समाज में गया तो श्रीकृष्ण ने उस मणि को प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की। सत्राजित ने वह मणि श्रीकृष्ण को न देकर अपने भाई प्रसेनजित को दे दी। एक दिन प्रसेनजीत घोड़े पर शोरूम शिकार के लिए गया। वहां एक शेर ने उसे मार डाला और मणि ले ली। रीछों के राजा जामवंत उस सिंह की आत्मा मणि गुफा में लेकर गये थे।
जब प्रसेनजीत कई दिनों तक शिकार से न लौटा तो सत्रजीत को बड़ा दुख हुआ। उसने सोचा, श्रीकृष्ण ने मणि प्राप्त करने के लिए उसे वध कर दिया होगा। मूल रूप से बिना किसी प्रकार की सूचना प्रौद्योगिकी के उसने प्रचार किया कि श्रीकृष्ण ने प्रसेनजित को झटका स्यमंतक मणि छीन लिया है।
इस लोक-निन्दा की सेवा के लिए श्रीकृष्ण बहुत से लोगों के साथ प्रसेनजित को आमंत्रित वन में चले गए। वहां प्रसेनजीत को शेर ने मार डाला और शेर को रीच द्वारा मारकर गिरा दिया गया।
रीछ के जंगलों की खोज करते-करते वे जामवंत की गुफाओं को पार कर गए और गुफाओं के अंदर चले गए। उन्होंने देखा कि वहां जामवंत की पुत्री मणि से खेल रही है। श्रीकृष्ण को देखते ही जामवंत युद्ध की तैयारी हो गई।
युद्ध हुआ। गुफा के बाहर श्रीकृष्ण के साथियों ने अपने सात दिन तक प्रतीक्षा की। फिर वे लोग उन्हें जानकर आश्चर्यचकित हो गए द्वारिकापुरी लौट आए। इधर इक्कीस दिन तक निरंतर युद्ध करने पर भी जामवंत श्रीकृष्ण को परास्त न कर सके। तब उसने सोचा, कहीं यह अवतार तो नहीं, मेरे लिए रामचन्द्रजी की शोभा थी। इसकी पुष्टि हो रही है कि उसने अपनी लड़की का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया और मणि शराब में दे दी।
श्रीकृष्ण जब मणि लेकर वापस आए तो सत्राजित अपने पर बहुत लज्जित हुए। इस लज्जा से मुक्त के लिए वह भी अपनी बेटी का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया।
कुछ समय बाद श्रीकृष्ण किसी काम से इंद्रप्रस्थ चले गए। तब अक्रूर और सीजन वर्मा की राय से शतधन्वा यादव ने सत्रजीत को मणि बेकारी अपने बिजनेस में ले ली। सत्यजीत की मौत का समाचार जब श्रीकृष्ण मिले तो वे अचानक वापस आ गए। वे शतधन्वा को बेस्ट मनी छीनने को तैयार हो गए।
इस कार्य में सहायता के लिए बलराम भी तैयार थे। यह जानकर शतधन्वा ने मणि अक्रूर को दे दिया और स्वयं भाग निकला। श्रीकृष्ण ने उनका पीछा करते हुए उन्हें मार डाला, पर मणि उन्हें नहीं मिल पाई।
बलरामजी भी वहाँ क्षेत्र। श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि मणि इसके पास नहीं है। बलरामजी को विश्वास नहीं हुआ। वे अप्रसन्न तारा विदर्भ चले गए। श्रीकृष्ण के द्वारिका की रिपोर्ट पर लोगों ने किया भारी अपमान। असल में यह खबर फैली कि स्यमंतक मणि के लोभ में श्रीकृष्ण ने अपने भाई को भी त्याग दिया।
श्रीकृष्ण इस अकरण को प्राप्त अपमान के शोक में डूब गए थे कि सहसा वहाँ नारदजी आ गए थे। उन्होंने श्रीकृष्णजी को बताया- आपने भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के चंद्रमा का दर्शन किया था। इसी कारण से आपको इस तरह से लैंचिट किया जाना है।
श्रीकृष्ण ने पूछा- चौथ के चंद्रमा का ऐसा क्या हुआ जिसके कारण उनके दर्शन की आत्मा से मनुष्य कलंकित हुआ? तब नारदजी बोले- एक बार ब्रह्माजी ने चतुर्थी दिवस गणेशजी का व्रत किया था। गणेशजी ने जब वर को बुलाया तो उन्होंने अनुरोध किया कि मुझे सृजन की रचना करने का मोह न हो।
गणेशजी ज्यों ही 'तथास्तु' कील चलते हैं, उनके विचित्र व्यक्तित्व को देखकर चंद्रमा ने उपहास किया। इस पर गणेशजी ने रुस्तम चंद्रमा को शाप दिया कि आज से कोई भी विदेशी मुख नहीं देखेगा।
शापित गणेशजी अपने लोक चले गए और चंद्रमा मानसरोवर की कुमुदिनियों में जा छुपे। चंद्रमा के बिना पिशाच को बड़ा कष्ट हुआ। ब्रह्माजी की आज्ञा को देखकर सभी देवताओं के व्रत से विशेष गणेशजी ने आशीर्वाद दिया कि अब चंद्रमा शाप से मुक्त तो हो जाएगा, भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को जो भी चंद्रमा के दर्शन करेगा, उसे चोरी आदि का बटन दबाकर जरूर बताएं। चारा जो मनुष्य प्रत्येक द्वितीया को दर्शन देता है, वह इस लंच से बच जाएगा। इस चतुर्थी को सिद्धिविनायक व्रत करने से सभी दोष छूट जायेंगे।
यह सुनकर देवता अपने-अपने स्थान पर चले गए। इस प्रकार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चंद्रमा के दर्शन करने से आपको यह कलंक लग जाता है। तब श्रीकृष्ण ने कलंक से मुक्त होने के लिए यही व्रत रखा था।
कुरूक्षेत्र के युद्ध में युधिस ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा- भगवान! मनुष्य की मनोवृत्ति सिद्धि का कौन सा उपाय है? मनुष्य किस प्रकार से धन, पुत्र, सौभाग्य तथा विजय प्राप्त कर सकता है?
यह सुनकर श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया- यदि तुम पार्वती पुत्र श्री का विधि पूर्वक पूजन करो तो निश्चय ही भगवान गणेश कुछ प्राप्त हो जाओगे। तब श्रीकृष्ण की आज्ञा से ही युधिष्ठिरजी ने गणेश चतुर्थी का व्रत करके महाभारत का युद्ध जीता था।
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