भगवान विष्णु के 10वें अवतार राम हैं लेकिन उनको आदिपुरुष क्यों कहा जाता है। आखिर आदिपुरुष कौन है और सत्यनारायण की कथा से इनका क्या संबंध है। आइए जानते हैं, आदिपुरुष कौन हैं? इसलिए होती है सत्यनारायण भगवान के साथ इनकी भी पूजा...
आदिपुरुष का मतलब क्या होता है। कौन हैं आदिपुरुष। इस सवाल का जवाब स्वयं भगवान विष्णु को भी जानना था। क्योंकि सृष्टि में जब उनका प्राकट्य हुआ था तब सृष्टि में उन्हें जल ही जल केवल नजर आ रहा था। उन्हें अपने बारे में भी कुछ पता नहीं था। भगवान विष्णु अपने आदिपुरुष होने के रहस्य से अनजान थे। उसी समय आकाशवाणी हुई कि आदिपुरुष को जानने के लिए तपस्या करो। भगवान विष्णु ने आकाशवाणी के अनुसार जल में बैठकर ही तप करना आरंभ कर दिया। नीर यानी जल पर निवास करने के कारण भगवान विष्णु नारायण कहलाए।
तपस्या के क्रम में उनकी नाभि से एक दिव्य कमल प्रकट हुआ और फिर उस कमल पर ब्रह्माजी का प्राकट्य हुआ। ब्रह्माजी भगवान विष्णु को प्रणाम करते हैं और उन्हें आदि पुरुष बताते हैं क्योंकि उनसे पहले किसी और पुरुष का प्राकट्य नहीं हुआ था। सृष्टि में प्रथम पुरुष के रूप में भगवान विष्णु का आगमन हुआ था। इसलिए भगवान विष्णु को ही आदि पुरुष कहा गया है।
आदि और अंत से रहित हैं आदिपुरुष
आदि पुरुष भगवान विष्णु से उत्पन्न हुए परम पिता ब्रह्माजी ने सृष्टि के निर्माण का काम आगे बढ़ाया। इसलिए सृष्टि में आरंभिक पुरुष के रूप में भगवान विष्णु की ही पूजा आदिपुरुष के रूप में होती है। जब भी घर में सत्यनारायण की कथा पूजा होती है तब सत्यनारायण भगवान से पहले आदिपुरुष और अनादिपुरुष की पूजा होती है। क्योंकि उस आदिपुरुष का न तो आरंभ का बोध किसी को है और न अंत का। आदिपुरुष आदि और अंत से रहित है।
भगवान राम ने की सभ्य समाज की स्थापना
भगवान राम भी विष्णु के ही अवतार माने जाते हैं। भगवान विष्णु के 10 अवतारों में भगवान राम से पहले जो भी अवतार हुए उन्होंने सृष्टि को स्थापित और व्यवस्थित करने का काम किया था। लेकिन भगवान विष्णु ने राम अवतार में मनुष्यों के लिए आदर्श व्यवस्था और मानवीय मूल्यों की आधारशीला रखी थी। इसलिए भगवान राम को भी वर्तमान समाज में आदिपुरुष की संज्ञा दी जाती है। भगवान राम को वह आरंभिक पुरुष माना जाता है, जिन्होंने सभ्य समाज किसे कहा जाता है इसकी व्याख्या की।
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